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20 Apr 2023 · 1 min read

रात हुई गहरी

रात हुई गहरी सी काली
दूर हुई निसदिन लाली
परिंदों ने पंख फड़फड़ाए
नभ में भी तारे दिखलाये

जुगनू निशा से बतियाते
छिपते तो कभी चमचमाते
शशि नभ से गुपचुप झाँकता
स्वर्णिम धरा का मुख ताकता

तेज हवा दल संग सरसराई
मनमोहक सी सुगन्ध आई
रातरानी, मोगरा महका
पलाश अंगारों सा दहका

लालटेन का मद्धम उजियारा
अंबर में इक अनोखा सितारा
झींगुर,कीटों की तेज ध्वनि
धान,सरसो से सजी अवनि

काले नभ चपला चमचमाये
सुमुख पर दन्तावली दिखाए
गगन अपलक निहारता जाए
मौन धरा का मन हर्षाये।

✍”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

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