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27 Oct 2016 · 1 min read

जगमगाती इसे दीवाली है

ये अमावस की रात काली है
जगमगाती इसे दिवाली है

वक़्त ने ही दिए महल ऊँचे
और छीनी भी इसने थाली है

आदमी साथ कुछ नहीं लाता
और जाता भी हाथ खाली है

जब न हों चाँद और तारे नभ में
बात तब दीप ने सँभाली है

धड़कनें प्यार में चलें ऐसे
दिल ये जैसे बजाता ताली है

बाग़ जिसने लगाया हाथों से
आज कितना अकेला माली है

जीत या हार कुछ मिले हमको
‘अर्चना’ खेलनी तो पाली है

डॉ अर्चना गुप्ता

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