जगमगाती इसे दीवाली है
ये अमावस की रात काली है
जगमगाती इसे दिवाली है
वक़्त ने ही दिए महल ऊँचे
और छीनी भी इसने थाली है
आदमी साथ कुछ नहीं लाता
और जाता भी हाथ खाली है
जब न हों चाँद और तारे नभ में
बात तब दीप ने सँभाली है
धड़कनें प्यार में चलें ऐसे
दिल ये जैसे बजाता ताली है
बाग़ जिसने लगाया हाथों से
आज कितना अकेला माली है
जीत या हार कुछ मिले हमको
‘अर्चना’ खेलनी तो पाली है
डॉ अर्चना गुप्ता