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31 May 2023 · 1 min read

“रात का मिलन”

रात का अँधेरा ओढ़ के पिया से मिलन को चली,
चांदनी चमक गई ,चांद से लिपट गयी।

चाँद भी जा छिपा बादलों में कहीं,
घटा भी बादलों को घेर के कही।

क्या हुआ जो तू हमसे टकरा गई ,
बादल भी घटा पर बहुत बरस पड़ा।

जमीं भी इतरा के मुस्करा पड़ी,
बादलों के देख के बोल वो पड़ी।

मैं भी थी प्यासी आज बुझ पड़ी,
बादल का स्वर कानों में आ पड़ी।

क्या कहूँ प्रिये ,मुझे याद आ पड़ी,
घटा और बादल की बात बढ़ चली।

साथ रहकर भी तुमने कहर ढा दिया,
बादल की बाहों में सिसकियाँ ले चली।

धरती की चाहत और बढ़ चली,
हस कर कही ,मैं तृप्त हो गयी।

मेरी सच्ची चाहत थी मैं तपती रही ,
धन्य हो बादल वो नजरों से देखती रही।

लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️

Language: Hindi
Tag: रात
1 Like · 105 Views
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