राजयोग महागीता: प्रभुप्रणाम::: घनाक्षरी ( पोस्ट २)
छंद: २२
चौसठ कला से युक्त शरणागतवत्सल,
सच्चिदानंद घन आप ही घनश्याम हैं ।
योगनिद्रा का आनंद लेते क्षीर– सागर में ,
आनंद के दाता आप परम विश्राम हैं ।
किसी को सायुज्य , सामीप्य, मोक्ष परम पद,
अथवा किसी को देते गोलोक धाम हैं ।
ऐसे किसी को देते गोलोक धाम हैं ।
ऐसे सर्वज्ञाता और विधाता कृपालु को भी ,
” कमल आनंद ” यह करता प्रणाम है ।।२२ !!