राजयोग महागीता:: गुरु ही हैं धर्म,निष्ठा तप, परमार्थ वह:: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट६६)
गुरु प्रणाम:::: ( घनाक्षरी ७)
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गुरुही हैं धर्म, निष्ठा, तप, परमार्थ वह —
षट् ऐश्वर्य युक्त गुरु मेर् भगवान हैं ।
गुरुकी कृपा से अधिक और कुछ भी नहीं
करते हम उनका अधिक सम्मान हैं ।।
उन तेजस्वी – ओजस्वी , करुणा – निधान का ही
करते सदैव हम नित्य यशगान हैं ।
हैं धीरज अधीर।को ,तिमिर में प्रकाश वे —
कोटि,- कोटि दीप्तिमान हमें दिनमान हैं ।
—- जितेंद्रकमलआनंद