राजयोगमहागीता:: सारात्सार: जितेंद्रकमलआनंद( पोस्ट६७)
सारात्सार:: घनाक्षरी क्रमांक १
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एक ही परमेश्वर है, दूसरा नहीं कहो !
करो ज्ञानयोग को सहज या राजयोग ।
द्वैत की न भावना रखकर अद्वैत भाव ,
प्रेम निराकार से ही ,कीजिए ध्यान योग ।
कर्तापन अभिमान से होकर मुक्त आप ,
निर्विचार ,निर्विकार , कीजिए ज्ञान योग ।
आध्यात्मिक विकास में भी रुचि आप लीजिए ,
सभी समस्याओं का जानिए निदान योग।।( १/ २१!!
—– जितेंद्रकमलआनंद