*राजनीति के टिप्स 【हास्य व्यंग्य】*

*राजनीति के टिप्स 【हास्य व्यंग्य】*
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राजनीति चर्चाओं में बने रहने का खेल है। जहाँ आपकी चर्चा होना बंद हुई, समझ लीजिए भैंस गई पानी में । कई लोग आजकल इसलिए चर्चा में आ रहे हैं क्योंकि वह एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जा रहे हैं । इससे उनका महत्व स्थापित होता है। नई पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं के साथ उनका फोटो अखबार की सुर्खियाँ बन जाता है। जो लोग कल तक उन्हें छोटा-मोटा नेता समझते थे ,अब उनको पता चल जाता है कि यह तो बहुत बड़े सूरमा हैं।
आप ही सोचिए ,दस-दस साल जब एक ही पार्टी में पड़े रहोगे तो कौन पूछेगा ? जिसके बारे में यह पता है कि वह अमुक पार्टी को ही वोट देगा,उस वोटर की आवभगत स्वाभाविक रूप से कुछ कम होती है । इसलिए ढुलमुल-वोटर बनो । चार लोग तुम्हारा वोट पक्का करने के लिए तुम्हारे आगे-पीछे घूमेंगे ।
एक बार का किस्सा सुनिए । चुनाव वाले दिन मतदाताओं को समोसे खिलाए जा रहे थे । पंद्रह-बीस लोग एक लाइन में कुर्सी पर बैठे हुए थे । एक दोने में दो समोसे रखकर एक-एक व्यक्ति को दिया जा रहा था। बीच में एक सज्जन को देने वाले ने समोसे का दोना नहीं दिया । पूछा गया कि क्यों भाई इन्हें समोसे का दोना क्यों नहीं दिया ? वह बोला -“यह तो वोट डाल आए हैं ! ”
कई लोग मतदान वाले दिन अपनी उपयोगिता अंत तक बनाए रखते हैं । जब तक पूरा मोहल्ला इकट्ठा न हो जाए और पैर पकड़ कर बूथ-प्रभारी अनुनय-विनय न करे, वह चलने के लिए तैयार नहीं होते । अंत में चलते समय पूछते हैं -” मेरी चप्पलें कहॉं हैं ?” जैसे कोई कहीं के बहुत बड़े राजा-महाराजा-नवाब हों, जिन्हें चप्पलें पहनाने के लिए दास-दासी उपस्थित रहती हों। मगर मौके की नजाकत को देखकर बूथ प्रभारी दौड़ कर उनकी चप्पले ढूंढता है और स्वयं अपने हाथ से मतदाता के चरण-कमलों में प्रविष्ट कर देता है । कई बार तो यह सारा कार्य मतदान का समय समाप्त होने के सिर्फ दस मिनट पहले ही संपन्न होता है । ऐसे में चार लोग कंधे पर बिठाकर मतदाता को लेकर मतदान केंद्र की ओर दौड़ जाते हैं। पूरे रास्ते मतदाता की पालकी दर्शनीय हो जाती है ।
व्यक्ति चतुराई से किस प्रकार अपने को महत्वपूर्ण बना सकता है ,इसको सोचने की आवश्यकता है । सुबह-सुबह जाकर वोट डालकर तुमने कौन-सा महान कार्य कर दिया ? तुम्हारी उंगली पर लगा हुआ नीला-काला निशान इस बात का द्योतक होता है कि अब तुम छूटे हुए कारतूस हो ! तुम्हारा मूल्य एक साधारण से कागज के टुकड़े की तरह रह जाता है !
इसलिए पार्टी बदलो ! भले ही दो-चार दिन के लिए नई पार्टी को ज्वाइन करो और फिर कह दो कि इससे मेरा मोहभंग हो गया और वापस आ जाओ, लेकिन चर्चा में तो रहो। कुछ भी नहीं कर सकते तो एक अफवाह फैलाओ कि अमुक व्यक्ति पार्टी छोड़कर जा रहे हैं ? फिर देखो, अगर उम्मीदवार अपने चार चमचे तुम्हारे घर पर न भेज दे तो कहना !
असंतुष्ट व्यक्ति को ही प्रमुखता मिलती है। जो संतुष्ट है ,उसकी तरफ कौन ध्यान देता है ? जिसका वोट पक्का है ,उसे काहे का महत्व ? दो-चार असंतोष के स्वर बुलंद करो और फिर देखो, राजनीति में तुम्हारा महत्व भी कायम हो जाएगा ।
चारों तरफ नजर दौड़ाओ, तुम्हें ऐसे लोग मिलेंगे जो कम से कम तीन बार पार्टियां बदल चुके हैं। उनकी आत्मा वही है, केवल चोला बदला है। यह वही महापुरुष हैं, जिन्होंने अध्यात्म के मूल को सही प्रकार समझा है। इन्हें मालूम है कि पार्टी की सदस्यता बाहर से पहने जाने वाले वस्त्र होते हैं । भीतर से तो कुर्सी की आराधना ही एकमात्र लक्ष्य होता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451