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14 May 2023 · 1 min read

रस्म ए उल्फत भी बार -बार शिद्दत से

रस्म ए उल्फत भी बार -बार शिद्दत से
हमने कभी निभाया था
और उसने हर दिन इक नया ज़ख्म दे,
नए रंगरूटों के साथ
मिल कर हमला करवाया था !

ऐलान _ए _जंग हम क्या करते ,
अब तो प्रेम ही दफ़न हुआ ! हमारे नसीब से !

हम कुर्वतों में कब तक दिल बहलाते
उस ब्राह्मणी ने तो सात फेरों का
दर्द ए चिराग गैर के लिए
दो दिलों की मोहब्बत
का मिटवाया था !!
काव्य कटाक्ष

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