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19 Aug 2021 · 1 min read

रमणी

सन्नाटा लगा है फैलने चहुँ ओर
रमणी बैठि है व्याकुल नदी के छोर

सौम्या शांत नैसर्गिक छटा है खास
सिकुड़ी सोचती दिखता न कोई शोर

बहती धार नदियाँ की कहे कुछ आज
नाविक आ किधर है मेरा न कोई जोर

तकती राह इतनी थक गई हूँ मैं यार
नौका ले चला आ तू माँगू मोर

कितनी देर की है देख नभ है सूर्य
भारी छन रहा गिनती करूँ मैं पोर

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