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29 Mar 2023 · 1 min read

रंग

अपने आप से मिलने के लिए उनका कलाम सुनता हूँ,
उनके लफ़्ज़ों में, मेरी दास्तान बयान होती है।

वो लम्हों की बुनी गठड़ी, जो मुझे डराती है, सताती है,
उसकी चुभन उनकी ग़ज़ल में आ के रोती है।

दर्द का रंग एक सा है, कहीं भी हो, कभी भी हो,
जागती रहती थी हर रात पहले, अब आराम से सोती है।

डॉ राजीव
चंडीगढ़।

Language: Hindi
140 Views
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