योग क्या है.?

महर्षि कपिल मुनि के सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति और पुरुष के संयोग से समस्त संसार की उत्तपत्ति हुई है। किंतु इस उत्तपत्ति के साथ ही प्रकृति अपने प्रभाव से सांसारिक मनुष्य में पंच क्लेश भी उत्पन्न करती है-
1- राग – अति प्रेम या लालच या स्वार्थ
2- द्वेष- अति घृणा या नफरत या विरोध
3- अस्मिता – अति अहंकार, सहजता नहीं, छोटा बड़ा का अति
4- भय- अकारण भय या डर
5- अविद्दा या अज्ञान
इन्ही सब क्लेश से मुक्ति पाने के लिए ही महर्षि पतंजलि ने योग की उत्तपत्ति की और जो मनुष्य स्वयं को सांसारिक विषय भोग से दूर रखना चाहते थे उनके लिए योग शास्त्र तैयार किया। एक प्रकार से कहा जाय तो सांख्य दर्शन की व्यवहारिक या प्रायोगिक पुष्टि योग दर्शन करता है।
वास्तव में, योग कोई ज्ञान या जिज्ञासा नहीं बल्कि शारीरिक एवं मानसिक अनुसासन है। इसलिए योग के लिए, “अथातो योग अनुसासनम”, कहा गया है एवं “योगस्य समाधि” अर्थात जो समाधि की ओर ले जाए। मगर योग के लिए जरूरी है, सदाचार का होना जिसके लिए योग शास्त्र में कहा गया है, “अचार हीनम ना पुदन्ति वेदा” अर्थात आचारहीन व्यक्ति को योगशास्त्र योग अनुरूप स्वीकार नहीं करता क्योंकि आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते अर्थात महाज्ञानी व्यक्ति अगर आचारहीन है तो उसके ज्ञान का कोई अर्थ नहीं बचता है।
इसी के साथ यह भी समझना आवश्यक है कि योग किसी भी धर्म के कर्मकांड का हिस्सा नहीं है बल्कि एक तकनीकी है। एक ऐसी तकनीकी जो प्रकृति से प्राप्त पंच क्लेश का नाश करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसलिए भले ही योग हिंदु धार्मिक शास्त्रों में वर्णित है और सनातन हिंदू धर्म की प्रमुख धरोहर है इसके बावजूद भी हिंदुओं के किसी भी त्यौहार या कर्मकांड में योग का कोई भी आसन प्रयुक्त नहीं होता और ना ही किसी भी स्तर पर योगशास्त्र की पूजा होती। हाँ इतना जरूर है कि वेद शस्त्रों का जो उद्देश्य है योग उसी उद्देश्य की प्राप्ति का एक साधन हैं किंतु देखा जाय तो हर धर्म का वही उद्देश्य है जो वेदों का है। इसलिए बौद्ध, जैन, सिक्ख धर्मों के साथ-साथ इस्लाम के सूफी संत योग में पारंगत थे। क्योंकि योग के निरंतर अभ्यास के द्वारा ही मन की चित्त वृत्तियों अर्थात विचारों की बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता से ध्यान बढ़ता है और ध्यान से व्यक्ति समाधि में प्रवेश कर जाता है और यही समाधि ही वह सीमा रेखा है जहां पर आता और परमात्मा के साक्षात दर्शन होते हैं।
अतः प्रकृति से उत्पन्न हुए पंच क्लेशों के नाश के लिए योग ने क्रमशः 8 तरीके बताए हैं जिनका अनुसरण करने पर शरीर और मन क्लेशहीन हो जाता है।
1- यम- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह
2-नियम – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान
3-आसन – स्थिरम सुखम आसनम, शरीर के स्तर पर सुख, मन के स्तर पर संतोष, आनंद एवं सहजता ही आसन है।
4-प्राणायाम- प्राण और आपान के प्रति सजगता ही प्राणायाम है। प्राण अर्थात आती हुई सांस और आपान अर्थात जाती हुई सांस। प्रणायाम का उद्देश्य सूक्ष्म प्राण शक्ति को विस्तार देना।
5-प्रत्याहार- प्रति + आहार अर्थात 11 इंद्रियों को उनके आहार अर्थात भोग से हटाकर मूल उदेश्य की तरफ मोड़ना।
6-धारणा- एकाग्रचित्त होना। अर्थात विचारों की बाढ़ को रोकना।
7-ध्यान – ध्यान रखा नहीं जाता बल्कि नींद की तरह स्वतः प्रस्फुट होता है। अर्थात जब योगी धारणा के द्वारा अपने मन को एकाग्रचित्त कर लेता है या विचारों की बाढ़ को रोक लेता है तब वह विचार शून्य हो जाता है और तभी धारणा स्वतः ही प्रस्फुट होती है।
8-समाधि- यह योगी का स्वयं से एकाकार है।
इस सबके साथ ही यह भी समझना होगा कि योग का उद्देश्य शरीर की बीमारी ठीक करना बिल्कुल भी नहीं है जैसा कि आजकल बाजार में प्रचलित है। योग करने से शरीर की बीमारी का ठीक होना बिल्कुल ऐसा ही है जैसे फूलों के बाग से अपने घर जाते समय फूलों की खुशबू लेना। व्यक्ति का उद्देश्य तो घर जाना है फूलों की खुशबू लेना नहीं मगर क्या करे उसके घर का मार्ग जाता है फूलों के बाग से इसलिए ना चाहते हुए एवं चाहते हुए वह उस खुशबू को ले लेता है।
यह योगसूत्र का निचोड़ बिल्कुल भी नहीं है यह तो उस सूत्र की एक बूंद भर हो तो भी मुझे खुशी होगी।
“योगस्य चित्ति वृत्ति नीरोगह”
Written By,
प्रशांत सोलंकी।