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25 Aug 2023 · 1 min read

ये रंगा रंग ये कोतुहल विक्रम कु० स

ये रंगा रंग ये कोतुहल विक्रम कु० सोनी
इसकी न जरूरत है
एक तन्हाई मुझे प्यारी
और सूनेपन से मुहब्बत है

ये भीड़ भाड़ ये रिहाइसी
बसने की न जरूरत है
ये वीराना मुझे पसंद
और सूनेपन से मुहब्बत है

ये महफिल ये पंचायत
इसकी नहीं आदत है
हम रुखसत रहे सही
हमे सूनेपन से उल्फत है

ये अशोध स्वार्थ इल्म
सब बेमतलब है
स्वयं में हलचल
मुझे सूनेपन से मुहब्बत है

ये सूनापन में, मैं, ‘मैं’ हू
खुद संग वक्त जीता हूं
ये वियोग मुझे भाता
सूनेपन को मुहब्बत कहता हू

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