युवकों का निर्माण चाहिए
● मुक्तक
तरुण जाग जाए स्वराष्ट्र का ,तब ही तो सचमुच विकास है।
जन जन के बंधुत्व रूप का उच्च भाल, उर का प्रकाश है।
उच्च सजगता का सुवास सह दिव्य प्रेम की सबल साधना
के बल से ही विश्व भूमि पर ,आर्य-देश ज्ञानी अकाश है।
●कविता
युवकों का निर्माण चाहिए, युवकों का निर्माण चाहिए
कलियुग के कलुषित तम हिय को,चीर सके वह बाण चाहिए
•सज्जनता की ढाल रो रही,काम-क्रोध जयमाल हो रही
विचलित नर के रोम-रोम में लिप्सा की सुरताल हो रही
बेटा बोले बात न मानू,पापा मुझे प्रमाण चाहिए
युवकों का निर्माण चाहिए, युवकों का निर्माण चाहिए
•अवनति औ उपहास बने हम,बंधन सह दुख-ग्रास बने हम
विकसित हैं, लेकिन अवशादी, चंद्रग्रहण खग्रास बने हम
झट तलाक है,रोयी खाट हैं, प्रेम-शांति का त्राण चाहिए
युवको का निर्माण चाहिए युवकों का निर्माण चाहिए
•सीखे नाहीं बिज्ञ ककहरा, मदिरा पीकर मना दशहरा
जड़ बनकर भ्रम- भँवर मध्य फँस,घूम रहा नर, दुख अति गहरा
सुप्त-अचेतन हिय स्वराष्ट्र को, अब चेतना कृपाण चाहिए
युवकों का निर्माण चाहिए, युवकों का निर्माण चाहिए
…………………………………………………………
●उक्त मुक्तक एवं कविता को “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत कर दिया गया है। जागा हिंदुस्तान चाहिए कृति के द्वितीय संस्करण में उक्त मुक्तक को पेज संख्या 21 एवं कविता को पेज संख्या 22 पर पढ़ा सकता है।
●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक