युद्ध सिर्फ प्रश्न खड़ा करता हैं [भाग८]

युद्ध में बिखरा हुआ शहर
अपने आप रो रहा हैं!
अपनी दुर्दशा को देखकर
उसका आँसु थम न रहा हैं!
कल तक मेरे चारो तरफ
रोनक ही रोनक रहता था!
सड़के गलियाँ चारों तरफ
शोर गुंजा करता था!
मेरे चारों तरफ ही
चहल-पहल रहता था!
खुशी और शांति का भाव
सदा बना रहता था!
आपस मै सब मिलजुल
हमेशा रहा करते थे!
किसी तरह का कोई द्वन्द
उनमे नही रहता था!
आज चारों तरफ यहाँ
सन्नाटा पड़ा हुआ है !
खामोशी ने जैसे हमको
चारो तरफ से जकड़ रखा है!
कल तक जो स्कूल बच्चे की
किलकारियों से गुजा करती थी ,
आज वह मलबा बनकर
खुद पर रो रहा है!
वह अस्पताल जहाँ दर्द से उबरने
के लिए भीड़ उमड़ा करता था,
आज वह खण्डहर बनकर
अपने दर्द पर खुद रो रहा है!
वह सड़क जो कभी गाड़ियों से
भरा हुआ रहता था,
चारों तरफ जिसके सिर्फ शोर मचा रहता था,
आज खामोशी से वह भी पड़ा हुआ हैं!
वो नन्हें – नन्हें बच्चे जो कभी
माँ-बाप के गोद न उतरते थे!
आज नन्हीं-नन्हीं कदमो से
मिलों पैदल चल रहे हैं!
भूख प्यास से तड़पते हुए ,
वे इधर-उधर भटक रहे हैं।
कौन सहारा देगा मुझको
चलते -चलते सोच रहे हैं।
न जाने कितनो के अपने
अपनो से बिछड़ गये है।
कितने ने तो अपना पूरा
परिवार खो दिया है।
कितने ने न जाने अपने
औलाद को खो दिया है
तो कितने बच्चों ने अपने
माँ बाप को खो दिया है!
कल तक प्यार की खुशबू से
महकने वाला मेरा शहर,
आज बारूद की बदबू
मै सन्ना हुआ हैं!
धरती भी खून से लथ-पथ
लाशों को देखकर,
हमसें पूछ रही है!
कहाँ है तुम्हारा मानवता,
क्यों उसका दम घोट रहे हो,
क्यों तुम सब अपने जिद्द मै
लाशें बिछा रहे हो,
क्या खुशी मिल पाएगी तुम्हें उस
सफलता से जो लाशों के ढेर से
गुजरी हो!
आज शहर यह प्रश्न लिए खड़ा था,
क्या तुम हमें पहले वाला रूप दे पाओगे,
क्या तुम कभी भी मेरी खुशियाँ लोटा पाओगे!
जो हमनें खो दिया है,
क्या किसी कीमत पर तुम उसे भर पाओगें,
यह सारे प्रश्न लिए बेजान शहर खड़ा था!
बार-बार उसके मन मैं प्रश्न आ रहा था,
क्या युद्ध ही इसके समाधान का विकल्प था,
क्या इंसानित को बिना चोट किये हुए इसे जीता नही जा सकता था,
यह प्रश्न उसके मन मे बार-बार उमर रहा था!
वह शहर बार-बार यही कह रहा था,
आज तक किसी युद्ध ने कहाँ किसी
प्रश्न को हल कर पाया हैं,
वह केवल इंसान के हैवानियत को दर्शाता है,
इन सब प्रश्नों से घिरा वह अपने शहर को देखकर रो रहा था!
~अनामिका