प्रतिबिंब

यह संसार मेरे ही मन का प्रतिबिंब था,
सारे आईने मुझे ही प्रतिबिंबित करते थे।
अगर दृष्टा को बदल लेता
तो
दृश्य स्वयम् बदल जाता !
ना हाथ लहू-लुहान होते,
ना उम्र गुज़रती परछाईओं से लड़ने में !!
डॉ राजीव
चंडीगढ़।
यह संसार मेरे ही मन का प्रतिबिंब था,
सारे आईने मुझे ही प्रतिबिंबित करते थे।
अगर दृष्टा को बदल लेता
तो
दृश्य स्वयम् बदल जाता !
ना हाथ लहू-लुहान होते,
ना उम्र गुज़रती परछाईओं से लड़ने में !!
डॉ राजीव
चंडीगढ़।