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4 Feb 2021 · 1 min read

मोहब्बत के खत ‘विरह’

तुम्ही सर्वस्व थे मेरे यही बस बोल ना पाया
तुम्हें मन के तराजू से कभी भी तोल ना पाया,
तुम्हें अपना बनाना है यहां तक ठान बैठा था..
मुझे फिर, तुम लताड़े यूं तभी से डोल ना पाया।

चलो तुम खुश रहो, अब से, इसी में है खुशी मेरी..
मैं सौचूंगा, चले इस चित्र में कोई रोल ना पाया!

तुम्हारी भावनाओं से तुम्हे अपना समझ कर के,
वही इक रोज़ ऐसा था जहां से मैं उलझ कर के
निभाओ साथ अपनों का विमुख उनसे नहीं होना
मैं कुछ दिन,और रो लूंगा,फिर बैठूँगा सुलझकर के ।।

अमरेश मिश्र ‘सरल’
लख़नऊ

64 Likes · 192 Comments · 1337 Views
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