मैथिली पेटपोसुआ के गोंधियागिरी?
ई गोंधियागिरी करनाहर सब त मैथिली भाषा के खंड बिखंड मे बांटि सुडाह क देलकै आ मिथिला मैथिली के नाम पर इ सब अपन पेट पोसै मे बेहाल रहल. परिणाम की भेल मैथिली अपने मे बंटा गेल आ तेकरा बंटनाहर वैह पेटपोसुआ मैथिल सब छै जे अपना फायदा दुआरे मैथिली के दफानने रहल आ मैथिली साहित्य के कहियो समाज स नै जोड़लक आ नै तेकर कहियो बेगरता बुझलकै?
मैथिली भाषा के शुद्ध-अशुद्ध, पछिमाहा-दछिनाहा, मधेश-कोसिकन्हा, बाभन-सोलकन, अगुआ-पिछलगुआ, पुरूस्कारी-होहकारी के लकड़पेंच मे बाँटि देलकै आ आब भवडाह केहेन जे सबटा मैथिली छियै? आ लेखनी पुरूस्कार आयोजन बेर मे मानक छोड़ि?
अनका राड़ सोलकन बना दुत्कारि दै छै किएक??
आस्ते आस्ते अंगिका, बज्जिका सब अलग भेल जा रहल अछि आ हैबो करब जरूरीए की ने? केकरो बोली के ई पेटपोसुआ मैथिल मोजर नै देलकै? मात्र अकादमी पुरूस्कार, मैथिली विभागक नोकरी लोभ, संयोजक पद दुआरे ई सब मैथिली मानक के ओझरी लगा मैथिली भाषा के खंड पाखंड मे बँटैत गेल? आ सब दिन ई पेटपोसुआ सब गोंधियागिरी खेला क भाषा साहित्य पर जबरदस्ती अप्पन कब्जा केने रहल? आ मिथिलाक जन समाज मैथिली सँ दूर होइत गेल.