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27 Aug 2016 · 1 min read

मैं हूँ दीप वो जो सदा ही जला हूँ।

नहीं मैं रुकूंगा नहीं मैं रुका हूँ।
सचाई के पथ पर सदा ही चला हूँ।।

कमी ढूँढने में लगे क्यूं हो मेरी।
कहा कब है मैनें कि मै देवता हूँ।।

मुझे मुफलिसी का तजुर्बा बहुत है।
अभावों में रहकर सदा ही पला हूँ।।

कभी गैर धोखा नहीं दे सका है।
मैं अपनों के हाथों हमेशा लुटा हूँ।।

सितम जुल्म मुझको झुका न सकेंगे।
मैं हूँ दीप वो जो सदा ही जला हूँ।।

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