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6 Mar 2023 · 1 min read

मैं भटकता ही रहा दश्त-ए-शनासाई में

ग़ज़ल
मैं भटकता ही रहा दश्त-ए-शनासाई में
कोई उतरा ही नहीं रूह की गहराई में

क्या मिलाया है बता जाम-ए-पज़ीराई में
ख़ूब नश्शा है तेरी हौसला-अफ़जाई में

तेरी यादों की सुई, प्रेम का धागा मेरा
काम आये हैं बहुत जख़्मों की तुरपाई में

डस रही है ये सियह-रात की नागिन मुझको
भर दिया ज़हर-ए-ख़मोशी, रग-ए-तन्हाई में

सुर्मा-ए-मक्र-ओ-फ़रेब आँखों में जब से है लगा
तब से है ख़ूब इज़ाफ़ा हद-ए-बीनाई में

फ़िक्र-ओ-फ़न, रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल, न ग़ज़ल की ख़ुशबू
बस लगा रहता हूँ मैं क़ाफ़िया-पैमाई में

सीख पानी से हुनर काम अनीस आएगा
दौड़ कर ख़ुद ही चला आता है गहराई में
– अनीस शाह अनीस

Language: Hindi
1 Like · 75 Views
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