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12 Oct 2022 · 1 min read

मैं पीड़ाओं की भाषा हूं

मैं पीड़ाओं की भाषा हूँ, उगी आँख में आँसू बोकर।

दुख न जाए हृदय तुम्हारा, मुझको पढ़ना पत्थर होकर।

मैं मधूलिका, मैंने खुद के, प्राणों पर आघात किया है।
और उर्वशी भी हूं जिसने, देवलोक का शाप जिया है।
स्वर्ग मुझे अब क्या त्यागेगा, मैं ही इस को त्याग रहीं हूं।
बरसों बरस तपस्या करके, दुःख का आशीर्वाद लिया है।

मैं खुद पर भी हँस लेती हूं, देख चुकी हूँ इतना रोकर।

अभिलिप्सित तुम क्या समझोगे, जो सीता ने दुख में पाया।
वो आनंद धरा का, जिसके बदले राजवंश ठुकराया।
सोचा है क्यों बदहवास से, मोहन मणि पाने को भटके ?
वंशी, यमुना, और कदम्ब में, क्या था ऐसा जिसे गंवाया ?

धीश द्वारिका क्या सुख पाये, चरणों को आँसू से धोकर।

पीड़ाओं को गीत बनाकर, सरगम से संवाद करूँगी।
युगों युगों जो रही उपेक्षित, पीढ़ा का संताप हरूँगी।
आँसू के आवे में तपकर, मिट्टी सूरज हो जाती है।
उन्हीं आँसुओं के मोती से, मैं अपना सिंगार करूँगी।

बांध ध्रुवों के पग में घुंघरू, नाच रही हूं धरती होकर।
– शिवा

Language: Hindi
Tag: Geet, गीत
4 Likes · 124 Views
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