मैं दीपक हूँ
मैं दीपक हूँ ,
मंद मंद मुस्काता हूँ
सबको लगता है
जलता हूँ
जलकर ही अंधियारा हरता हूँ ,
पर जलना नहीं कहो उसे
वो कर्म तो तप है मेरा
तप कर ही प्रकाशित होता हूँ
आस पास को रोशन करता हूँ
जग का सारा तम हरता हूँ ।
तपकर ही प्रकाश निकलता
संदेश जगती को नव मिलता ।
हम भी सीखें दीपक से जलना
मधुर मधुर मन से तपना
तपकर भी खुशियाँ फैलाना
मंद मंद मुस्काते रहना
रोशन रहकर रोशन करना ।
हमारा जीवन भी दीप सा
प्रकाशित होता रहे और जग को प्रकाश का संदेश देता रहे ।
ऐसी गुण धर्मिता वाले दीप से सजे दीप पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली ।