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17 Aug 2021 · 1 min read

मेरे शिव जी (२)

एक दिवस की बात रही हैं,
सुबह सुबह मैं यात्रा पर निकली,
नंदी पर हुए सवार शिव जी की मूरत देखी,

झूम उठा मेरा तन मन ,
हो गए मुझे मेरे शिव के दर्शन ,
किन्तु उठा मन में एक ऐसा प्रश्न,
जिसने कर दिया मेरे मन को अशांत ।

जिसने यह संसार बनाया ,
जिसने तारों को चमकता,
जिसने बनाया मनुष्य महान,
फिर क्यों नहीं मिल पाया उनको सम्मान ?

एक टूटी फूटी झोपड़ी को ,
बना दिया महादेव का स्थान,
कहां गए दुनिया के इटे ?
क्या हो गए सीमेंट और बालू?

क्यों बन नहीं पाया ,
मेरे महादेव का स्थान,
क्या हो गए सब ख़ाक समान?

एक सुनसान जगह पर,
शिव की अकेली मूरत देखी,
मन ही मन यह सोची

जिसने यह संसार बनाया ,
जिसने घर घर परिवार बनाया ,
फिर क्यों मैंने उन्हें अकेला पाया ?

वह जप रहे किसी और कि माला,
मैं जप पाती उनकी माला,
उन्होंने त्यागा घर परिवार ,
मैं त्याग पाती यह संसार ।

एक छोटी कुटिया बनाकर,
बैठ जाऊं अपनी आशन लगाकर,
जपु मैं अपनी शिव कि माला,
खुल जाता मेरे मन का ताला ।

बनूं मैं अपनी शिव की गौरी,
बस यही है चाहत मेरी,
बचपन से जिसे सब कुछ माना,
लोगों ने उन्हें शिव नाम से जाना।

Language: Hindi
Tag: कविता
5 Likes · 4 Comments · 267 Views
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