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22 Feb 2023 · 1 min read

मेरे भी थे कुछ ख्वाब,न जाने कैसे टूट गये।

मेरे भी थे कुछ ख्वाब,न जाने कैसे टूट गये।
हाथ अभी थामा न था,मेरे। अपने रूठ गये ‌।

साथ सब थे महफ़िल में, जाने कैसी हवा चली
ओझल कब आंखों से हये,हाथ कैसे छूट गये ।

आंसू आंखों में जमने लगे,लब भी कुछ कह न सके
हैरान हूं मैं सोच कर ,कैसे पीये सब्र के घूंट गये।

किसके माथे मढू ये दोष,किसकी ग़लती बोलूं
सब रहा धरा का धरा,भाग थे अपने फूट गये ।

सुरिंदर कौर

1 Like · 147 Views
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