मेरी कविताएं

मेरी कविताएं चंद लोग ही पढ़ते हैं,
कुछ तो खुश कुछ अंदर से कुढ़ते है।
कुछ कद्र करें कुछ आकर भिड़ते हैं
मेरी कविताएं चंद लोग ही पढ़ते हैं।
कुढ़ने वालों नमस्कार।
पढ़ने वालों को हृदयाभार।
जो नहीं पढ़ते उन्हें मेरा प्यार।
नहीं कोई गिला सब मेरे यार।
यही भाव ले हम कविता को गढ़ते हैं।
मेरी कविताएं चंद लोग ही पढ़ते हैं।
चुन लेता कुछ बिखरे मोती,
होती प्रस्फुटित काव्य ज्योति।
कोई मंझा सा रचनाकार नहीं।
या पेशेवर कलमकार नहीं ।
निंदा स्तुति सममान भाव से बढ़ते हैं।
मेरी कविताएं चंद लोग ही पढ़ते हैं।
सतीश सृजन, लखनऊ।