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11 Dec 2022 · 1 min read

मेरी आँख वहाँ रोती है

मेरी आँख वहाँ रोती है ।

विस्थापित-सा जीवन जीकर
कर्कश बोलों का विष पीकर
अपने ही जर्जर कंधों पर
ममता लाश जहाँ ढोती है ।

मेरी आँख वहाँ रोती है ।

आग पेट की शम करने को
आँतें सूखी नम करने को
दुख का पर्वत रख छाती पर
तरुणी लाज जहाँ खोती है ।

मेरी आँख वहाँ रोती है ।

न्याय धर्म को धता बताकर
रिश्वत को निज अंग लगाकर
जिस्म चाटने वाले मुँह से
लॉ की बात जहाँ होती है ।

मेरी आँख वहाँ रोती है ।
०००
अशोक दीप
जयपुर

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