!! मुसाफिर !!

ऐ मुसाफिर तू सोच सोच के
कीमती पल क्यों बिताते हो,
एक लक्ष्य की दरिया की ओर
चलो उठो , बढ़े चलो ।
ऐ मुसाफिर तू कहां चला
जरा हमें भी तो बताते चलो
मिलकर साथ चलेंगे हम भी
उजाला की ज्योति जलाते चलो ।
इन मुसाफिरों का क्या कहना
दिनकर के पहले उठ के वो,
करते चले अपनों का काम
जरा हमें भी बताते चलो ।
मुसाफिरों की ये उल्लास उमंग
खुशी खुशी से बांटते चलो,
मिलकर गाकर धूम मचाकर
खुशी की मनसा बढ़ाते चलो ।
ऐ मुसाफिर तू सोच सोच के
कीमती पल क्यों बिताते हो ।।
राजा कुमार ‘चौरसिया’
सलौना,बखरी, बेगूसराय