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15 Apr 2020 · 1 min read

मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी
*********************

लॉकडाऊन की सीमा बढ़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

बाल की लटाएं भी बढ रही
श्याम श्वेत दाढ़ी है चढ़ रही
गेसुओं की हैं झुंझले पड़ी
मुश्किलों कीछिड़ी है झड़ी

भार्या भर्ता प्रेम में रच गई
पति आदतों से है मच गई
रिश्तों में उल्टी तान छिड़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

कहती थी घर में आते नहीं
कहे क्यों घर से जाते नहीं
कहासूनी की सीमा है बढ़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

खान पान है काम रह गया
बिस्तर पर आराम रह गया
काम धंधों की फूंक है उड़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

बच्चे खेल खेलते थक गए
लड़ झगड़ कर हैं अक गए
पढ़ाई हेतु किताब ना फड़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

विवाह समारोह हैं रुक गए
दुख में आने जाने छुट गए
सांत्वना फोन पर देनी पड़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

मजदूर भूखमरी कगार पर
विराम लगा है व्यापार पर
महामंदी की जंग जो छिड़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

ना जाने ये दिन कब जाएंगे
अच्छे दिन फिर कब आएंगे
सड़ेगी दुनिया है घर में पड़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

प्रवासियों का है हाल बुरा
परिवार जनों से हुए हैं जुदा
जमातियों से मुश्किलें बढ़ी
मुश्किलों की छिड़ी हैं झड़ी

सुखविंद्र सरकारें खामोश हैंं
जैसे वो एहसानफरामोश है
निषेधाज्ञा की सीमा भी बढ़ी
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी

लॉकडाऊन की सीमा बढ़ीं
मुश्किलों की छिड़ी है झड़ी
**********************

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Comments · 300 Views

Books from सुखविंद्र सिंह मनसीरत

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