तारीख

आज फिर इस महीने की वही तारीख आई है,
तुम्हारी तस्वीर देख आज फिर आँख भर आई है !
आसमां से एक टूटा सितारा भी न गिरा इस ज़मीं पर
सन्नाटा आसमां का पसर गया ज़िन्दगी की ज़मीं पर !
नादान सी उस ज़िन्दगी को जब समझ आने लगी थी
आस तुम्हारी आँखों की , ज़िन्दगी को हंसाने लगी थी !
कहाँ जाना था हमने खामोशी यूँ चुपके से उतर आएगी
गुनाह किये बगैर ही ज़िन्दगी यूँ बिन आंसू के रुलाएगी !
कराहती आवाज़ तुम्हारी आज भी लगाती है पुकार
जो कह न पाए तुम , वह सुनाती है बार बार !
यूँ तो चले जाते थे तुम बिन बताये हमें बाहर कई बार
पर तुम्हारा यूँ चले जाना ,अखर गया हमें इस बार !
बिना कोई आहट किये तुम फिर ज़िन्दगी में चले आना
शायद ज़िन्दगी के लबों को आ जाये फिर मुस्कुराना !
………………….डॉ सीमा (कॉपीराइट)