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23 Oct 2016 · 1 min read

मुझ को कभी छु नही पाओगे/मंदीप

मुझ को कभी छु नही पाओगे/मंदीप

तुम को हर जगह मिलूँगा,
हर रास्ते चोहराये पर मिलूँगा,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

हर पल याद तुम को आऊँगा,
हर पल अपने आप को महसूस कराऊँगा,
पर तुम मुझ को कभी छु नही नही पाओगे।

हर सुबह तुम को उठाऊँगा,
हर रात तुम को सुलाऊगा,
पर तुम मुझ को छु नही पाओगे।

मिलूँगा तुम्हारे ठहरने में,
मिलूँगा तुम्हारे चलने में ,
पर तुम कभी मुझ को छु नही पाओगे।

बनुगा में तुम्हारा सिराहना हर रोज,
आऊगा तुम्हारे ख्वाबो में हर रोज,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

होगा तुम्हारे हर पल में,
मिलूँगा तुम्हारे कल में,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

होगा तुम्हारे हर काम में,
मिलूँगा तुम्हारे आराम में,
पर तुम कभी मुझ को छु नही पाओगे।

होगा तुम्हारी हर फ़िक्र में,
पाओगे मुझ को हर जिक्र में,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

होगा तुम्हारी हर यारी में,
होगा तुम्हारी प्यार की क्यारी में,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

तुम्हारी आस में होगा,
तुम्हारी सास में होगा,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

रहूँगा हमेसा तुम्हारे प्यार के घेरे में,
दिखूँगा हर इंसान के चहरे में,
पर तुम मुझ को कभी छु नही पाओगे।

मंदीपसाई

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