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19 Jul 2024 · 1 min read

मुक्ति

अगर बाँधोगे मुझे बंधनों में
तो सच कहती हूँ
उड़ जाऊँगी
मैं मोक्ष के चिंतन की हूँ उत्तराधिकारणी
तुम्हारी पैंदी बातों से उकता जाऊँगी
चाहो तो एक बार उड़ो मेरे साथ
मन को विचरने दो
इसके भेद खुलने दो
हज़ारों सालों से बंद पड़ी है
ये किताब
इसके एक एक पन्ने को बोलने दो ।

शशि महाजन- लेखिका

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