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25 Feb 2019 · 1 min read

मिटाकर नफ़रतें मन से….. (‘इश्क़-ए-माही’ पुस्तक ग़ज़ल संग्रह से)

मिटाकर नफ़रतें मन से अज़ब इक बीज बोया है
जिसे कहते हो तुम उल्फ़त उसे दिल में संजोया है

वही हमको लगे प्यारी उसी के तो हैं हम शागिर्द
उसी का नाम ले करके ज़माना खूब रोया है

चलो चलकर दिखादें हम ज़माने को नज़ारे अब
हुकुमत चल रही कैसे कहाँ किसने क्या खोया है

उसी की आज रहमत से सदा होती बसर अपनी
कहानी है गज़ब उसकी जिसे दिल में पिरोया है

हटादे रुख़ से हर पर्दा अगर चाहे मेरा ‘माही’
दिखादे अक्स वो सारे जिसे तूने लुकोया है

© डॉ० प्रतिभा ‘माही’

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