मा भारती को नमन

मा भारती को नमन,मा शारदे को है वंदन!
यह महाकाव्य नही,है मेरे अंतस का क्रंदन!!
मै सूर नही,तुलसी नही,ना मै हू कालिदास!
छमा प्रार्थना कर लिख रहा,मन मे विश्वास!!
मेरे अंतस की ज्वाल,अनुज समझ अपनाए!
भाषा-साहित्य त्रुटि,नवाकुर समझ बिसराए!!
बोध नही मुझ ‘बोधिसत्व’को गलत-सही का!
लेखा-जोखा नही यह किसी रोकड-बही का!!
‘शान्ती’पुत्र,’प्रकाश’पुजं की तेजस्वी ज्वाला हू!
‘कस्तूरिया’ हँ कस्तूरी सा महँकू यू मतवाला हँ!!
साहित्य-संस्कृति की मुझको कोई समझ नही!
क्यू मेरी लेखनी देख, दुनिया कवि समझ रही?
शोषड-उत्पीडन चिन्तक,करता हू यही प्रयास!
क्यू मौन रहू जब मस्तिष्क लगा रहा ये कयास?
क्या समय नही ,प्रजातंत्र को रामायण दर्शन की?
समर अभी है आवश्यकता कृष्ण औ सुदर्शन की!!
प्रजातंत्र के रछक,कब तक भारत गारत मे ढकेलेगे?
हमने अब तक झेला है,क्या आने वाले भी झेलैगे?