Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jul 2021 · 6 min read

मासूम शिव भक्त – एक सच्ची कहानी

शंकर एक अनाथ लड़का था। उसको जंगल में रहने वाले शिकारियों के एक गिरोह ने पाला था। उसके पास कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं थी – वह केवल एक चीज जानता था कि उसे कैसे जीवित रहना है। शिकार करना और उनको मारना तथा जंगल के फलों को खाना और नदी के पानी को पीकर अपने आप को जीवित रखना जानता था।

एक दिन वह अपना रास्ता भटक गया और उसने देखा कि कुछ लोग नदी के किनारे पर बने एक पत्थर की आकृति के चारो ओर जोर जोर से चिल्ला रहे हैं।
कुछ लोग उसपर फूल, फल और नारियल चढ़ा रहे हैं।शायद उसने सोचा यह कोई मकान होगा जिसमे लोग रहते होगे। पर यह एक प्राचीन मंदिर था।
लेकिन शंकर ने इसे पहले कभी नहीं देखा था पर इसके बारे में जानने के लिए वह काफी उत्सुक था।

उसने तब तक इंतजार किया जब तक कि लगभग सभी लोग उस मंदिर से नहीं चले गए। अंत में उसने एक युवा लड़के को पत्थर की इमारत से बाहर आते देखा और उससे बात करने का फैसला किया और शंकर ने उससे अपने मन में आए कई सवाल पूछे।

उसका पहला प्रश्न था,”इस इमारत को क्या कहा जाता है ? लोग अपने साथ क्या लाते है ? फिर उन चीजों को अंदर वाली इमारत में क्यों छोड़ कर वापिस आ जाते है?”

चीजों को अपने साथ लाना और उन्हें अंदर छोड़ कर वापिस चले जाने पर वह लड़का शंकर की अज्ञानता व मासूमियत पर बहुत ही हैरान था और उसके सवालों से चकित भी था, पर यह वह नहीं जानता था कि वह पास के जंगल में रहता है और शिकार करके ही अपना जीवन यापन करता है। लेकिन फिर भी उसने उसके सवालों के जवाब देने की पूरी कोशिश की। उसने शंकर को बताया, “यह भगवान शिव का मंदिर है। लोग यहां उन्हें फल और फूल चढ़ाने आते हैं। वे शिव भगवान से जो चाहते हैं वह मांगते हैं और शिव उनकी सभी की प्रार्थनाओं को सुनते हैं।”

यह सुनकर शंकर तुरंत मंदिर जाना चाहता था। लड़के ने उसे अंदर का रास्ता दिखाया और शिवलिंग के बारे में बताया। शंकर ने मासूमियत से लड़के से पूछा। “यह शिवलिंग क्या चीज है ? और हमें क्या देता है?” लड़के ने बताया “हम शिव से जो मांगते हैं, वह हमे दे देता है, हम सब ऐसा मानते हैं।” लड़के ने कहा “अब अंधेरा हो रहा है। अब मुझे घर जाना होगा।” और वह शंकर को वहीं अकेला छोड़कर चला गया।

शंकर ने झिझकते हुए मंदिर में प्रवेश किया । वह एक कोने में बैठ गया और सोचा, “एक पत्थर किसी को वह चीज कैसे दे सकता है जो वे चाहते हैं?” इसलिए उसने इसका परीक्षण करने का फैसला किया और उसने पत्थर की प्रतिमा से कहा, “हे शिव! कृपया मुझे पर्याप्त शिकार करने दें ताकि मैं भूखा न रहूं। मेरे पास आपको चढ़ाने के लिए कोई फल या फूल नहीं हैं, लेकिन यदि आप मुझे शिकार देते हैं, तो मैं उसे आपके साथ साझा करूंगा। मैं वादा करता हूँ कि मैं आपको धोखा नहीं दूंगा।” उसने घोषणा की ।

अगली सुबह शंकर शिकार करने गया। उसने पूरे दिन शिकार की तलाश की, लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह भूख से तिलमिला रहा था। वह काफी निराश हो गया क्योंकि उसे कोई शिकार नहीं मिला था। दोपहर हो चुकी थी। अब उसे लगने लगा कि मंदिर के लड़के ने उससे झूठ बोला था फिर भी, उसने शिकार जारी रखा। जैसे ही शाम हुई, उसने दो खरगोशों को अपने बिल में से आते देखा। शंकर ने उन खरगोशो को मार डाला। चूंकि उसने शिव भगवान से वादा किया था कि वह अपने शिकार को साझा करेगा, वह मरे हुए खरगोशों में से एक के साथ मंदिर गया।

देर हो चुकी थी और मंदिर सुनसान था। शंकर ने मंदिर में प्रवेश किया और जोर से कहा,” कृपया आओ और अपना हिस्सा ले लो प्रभु। आप के लिए मै लाया हूं।”

वह वहां बैठ गया और अंधेरा होने तक प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन भगवान प्रकट नहीं हुए। शंकर को भूख और नींद आने लगी और उसने खरगोश को मंदिर में छोड़ने का फैसला किया।

अगली सुबह जब लोग मंदिर पहुंचे तो उन्हें शिवलिंग के सामने मरा हुआ खरगोश मिला। भक्त बहुत परेशान थे। “यह यहाँ कौन लाया है? उसने हमारे मंदिर को अपवित्र करने की हिम्मत कैसे की?” उन्होंने खरगोश को बाहर फेक दिया।

अगले दिन शंकर अपनी भूख मिटाने के लिए जंगल में शिकार करने गया। लेकिन इस बार उसकी किस्मत अच्छी नहीं थी और उसे शिकार भी नहीं मिला। उसने सोचा, “आज रात को मंदिर जाना चाहिए और शिव से पूछना चाहिए कि उनको खरगोश का भोजन कैसा लगा?” शंकर यह पूछने के लिए मंदिर गया। जब वह मंदिर पहुचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। उस रात मंदिर में लोगों की काफी भीड़ थी। शिवरात्रि की रात थी।, लेकिन अबोध शिकारी लड़के को इस बारे में कुछ भी नहीं पता था।

शंकर ने चारों ओर देखा और उस युवा लड़के को देखा जिसने उसको मंदिर के अंदर शिव से प्रार्थना करने के लिए कहा था। चूंकि उसे इतने सारे लोगों के आसपास रहने की आदत नहीं थी, उसने वहीं रुकने का फैसला किया और पास के एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया। यह एक लंबा इंतजार था और समय बिताने के लिए उसने पेड़ से पत्ते तोड़कर जमीन पर फेंकना शुरू कर दिया। उसे अज्ञात, पेड़ के नीचे एक छोटा सा शिवलिंग था, जिसकी पूजा लंबे समय से नहीं की गई थी। शंकर के द्वारा फेके गए बेल के पत्ते उस शिवलिंग पर गिरे। शंकर भजनों से मंत्रमुग्ध हो गया और धीरे-धीरे साथ गाना और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया।

रात भोर में बदल गई और सभी भक्त मंदिर से चले गए । शंकर पेड़ से उतरा और मंदिर में प्रवेश किया। उसने देखा कि शिवलिंग की आंखों पर लाल निशान थे। वे कुमकुम से थे जो लोगों ने चढ़ाए थे, लेकिन शंकर को यकीन था कि शिव को उनकी आंखों में परेशानी हो रही है। उसने शिव की खेदजनक स्थिति के रूप में जो कुछ भी महसूस किया, उसके लिए उसे बहुत दुख हुआ।
वह उनकी मदद करना चाहता था। उसने सोचा “शिव यहाँ अकेले रहते है और बीमार होने पर उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। जब तक भक्त उनसे मिलने नहीं आते, उन्हे भोजन भी नहीं मिलता।”
शंकर ने एक रात पहले भक्तों को शिवलिंग पर जल चढ़ाते देखा था। “प्रभु को ठंड लग रही होगी। शायद वह कांप रहे है,” उसने सोचा। “आखिरकार, वह केवल पत्तियों से ढके हुए है!”

तो उसने शिव से पूछा, “मेरे स्वामी, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? शायद कुछ खाना या दवा? मैं आपकी सेवा कैसे कर सकता हूँ?” शिव ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।

शंकर ने सोचा। “भगवान वास्तव में बहुत बीमार है क्योंकि वह अब उत्तर देने में भी असमर्थ हैं!”

वह तुरंत जंगल में गया, कुछ औषधीय जड़ी बूटियों को लाया और लाल निशान पर उनका लेप लगाया। लेकिन कुछ नहीं हुआ! उसने कहा “लगता है कि यह अंधे हो गए है! मुझे प्रभु को अपनी एक आंख देनी चाहिए ताकि वह ठीक हो जाए। यह निश्चित रूप से उन्हे खुश कर देगा!”

उसका दिल पवित्र था और उसने वहां शिव के हाथ में रखे त्रिशूल को उठाया और त्रिशूल को अपनी दाहिनी आंख की ओर ले गया और अपनी आंख को निकालने का प्रयत्न किया। शंकर अनपढ़ था, उसे मंत्रों या पूजा के उचित तरीकों का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उसकी भक्ति की कोई सीमा नहीं थी। जैसे ही वह अपनी आंख निकालने वाला था, शिव अपनी पत्नि पार्वती के साथ प्रकट हुए। उन्होंने पार्वती से कहा “इस भक्त शंकर ने अनजाने में शिवरात्रि पर उपवास किया, बेल के पत्तों से मेरी पूजा की और साबित किया कि उनका दिल बेदाग है। मै अपने इस भक्त पर काफी प्रसन्न हूं।”

शिव भगवान ने शंकर से कहा “तुमने मुझे अपनी मासूमियत के कारण जीत लिया है,” प्रभु ने मुस्कुराते हुए कहा,”लोग मुझसे हर समय वादे करते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हे वो मिल जाए जो उन्हे चाहिए वो उनको भूल जाते हैं। दूसरी ओर, तुमने मेरे साथ एक सच्चे इंसान की तरह व्यवहार किया, और यह वास्तव में बहुत दुर्लभ है। अब से तुम मेरे इस संसार में सबसे बड़े भक्त माने जाओगे और तुम्हारा नाम मेरे साथ सदा जुड़ा रहेगा। तुम कई सदियों तक जीवित रहोगे। इस बात को कहकर भगवान शिव व मां पार्वती अंतर्ध्यान हो गए। तभी से लोग शिव के साथ शंकर भी लगाने लगे।

राम कृष्ण रस्तोगी
गुरुग्राम

Language: Hindi
Tag: कहानी
23 Likes · 28 Comments · 3879 Views

Books from Ram Krishan Rastogi

You may also like:
कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं!
कैसा अलबेला इंसान हूँ मैं!
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
***
*** " ओ मीत मेरे.....!!! " ***
VEDANTA PATEL
बदल दी
बदल दी
जय लगन कुमार हैप्पी
पश्चाताप
पश्चाताप
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
💐कई बार देखकर भी एक बार देखा💐
💐कई बार देखकर भी एक बार देखा💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
"वो गुजरा जमाना"
Dr. Kishan tandon kranti
जो ना होना था
जो ना होना था
shabina. Naaz
अहा! लखनऊ के क्या कहने!
अहा! लखनऊ के क्या कहने!
Rashmi Sanjay
"हे वसन्त, है अभिनन्दन.."
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
आज की प्रस्तुति: भाग 4
आज की प्रस्तुति: भाग 4
Rajeev Dutta
■ आज का दोहा
■ आज का दोहा
*Author प्रणय प्रभात*
तुम भोर हो!
तुम भोर हो!
Ranjana Verma
उम्र गुजर रही है अंतहीन चाह में
उम्र गुजर रही है अंतहीन चाह में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
न रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
न रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
सत्य कुमार प्रेमी
मन से मन को मिलाओ सनम।
मन से मन को मिलाओ सनम।
umesh mehra
Khahisho ke samandar me , gote lagati meri hasti.
Khahisho ke samandar me , gote lagati meri hasti.
Sakshi Tripathi
*धूप में रक्त मेरा*
*धूप में रक्त मेरा*
सूर्यकांत द्विवेदी
*हृदय की वेदना हर एक से कहना नहीं अच्छा (मुक्तक)*
*हृदय की वेदना हर एक से कहना नहीं अच्छा (मुक्तक)*
Ravi Prakash
चुनाव आते ही....?
चुनाव आते ही....?
Dushyant Kumar
किराएदार
किराएदार
Satish Srijan
रेलगाड़ी
रेलगाड़ी
श्री रमण 'श्रीपद्'
शांति दूत वह बुद्ध प्रतीक ।
शांति दूत वह बुद्ध प्रतीक ।
Buddha Prakash
Writing Challenge- सर्दी (Winter)
Writing Challenge- सर्दी (Winter)
Sahityapedia
अपनी पहचान को
अपनी पहचान को
Dr fauzia Naseem shad
कि सब ठीक हो जायेगा
कि सब ठीक हो जायेगा
Vikram soni
किसी पत्थर पर इल्जाम क्यों लगाया जाता है
किसी पत्थर पर इल्जाम क्यों लगाया जाता है
कवि दीपक बवेजा
गुलाब के अलग हो जाने पर
गुलाब के अलग हो जाने पर
ruby kumari
*मय या मयखाना*
*मय या मयखाना*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
🙏माॅं सिद्धिदात्री🙏
🙏माॅं सिद्धिदात्री🙏
पंकज कुमार कर्ण
Good things fall apart so that the best can come together.
Good things fall apart so that the best can come...
Manisha Manjari
Loading...