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12 May 2024 · 1 min read

मां

मां जीवन के गीतों की धार है
संयम का दूसरा किरदार है
बच्चों के दुख में छलकती है जिसकी आंखें
मां जीवन का अमूल्य उपहार है।

सारा दर्द ओढ़कर जो सदा मुस्कुराती है
अपनी बातों की चाशनी से घर महकाती है
घर में सबकी पसंद का ख़्याल रखती है
स्वयं जो पसंद -नापसंद से बेख्याल रहती है।

जिसके होने से घर का कोना हंसता है
मां का होना बच्चों को घर से जोड़ता है
आज मां के बिना घर उदास लगता है
घर का सिलबट्टा कहां अब बोलता है।

पापड़,बरी,तिलौरी अचार सभी बनते हैं
मां के बिना भी ये सभी बना करते हैं
जाने कौन सा खजाना छुपाए थी मां हाथों में
कि सारे पकवान उनके बिना फीके लगते हैं।

__चारुमित्रा

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