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14 May 2023 · 1 min read

“माँ”

चक्की के दो पाट से रिश्ते
धान सी पिसती बीच में “माँ”
रिश्तों के बीच-बचाव में आ कर
चप्पल जैसी घिसती “माँ” ☹️

रिश्ते नाते घर परिवार
अच्छा बुरा सब स्वीकार
दर्द को खुद की दवा बना के
घाव के जैसे रिसती “माँ” ☹️

तुम माँ हो फिर भी समझाया नहीं
सब कुछ जानो पर सिखाया नहीं
इस सीख सबक के छोर से बंध कर
रबर जैसे खिंचती माँ 😥

तुझे वो प्यारा बस मैं नहीं
हूँ मैं गलत, सिर्फ वो सही
“तेरा-मेरा” कर सब हाथ छटक दें
फिर मुठ्ठी जैसे भिंचती माँ ☹️

“इंदु रिंकी वर्मा”©

Language: Hindi
155 Views
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