*माँ छिन्नमस्तिका 【कुंडलिया】*

*माँ छिन्नमस्तिका 【कुंडलिया】*
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धारा बहती रक्त की ,काटा सिर को आप
रक्त-पिपासा शांत की ,माँ ने यों चुपचाप
माँ ने यों चुपचाप ,जया – विजया ने पाई
मस्तक धड़ से छिन्न ,युद्ध-रुचि नहीं दिखाई
कहते रवि कविराय ,अनावश्यक रण हारा
नहीं अन्य का रक्त , बही माँ चंडी धारा
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कथा : असुरों से युद्ध में विजय के बाद भी जब माता चंडी देवी की सहयोगी जया और विजया की युद्ध-पिपासा शांत नहीं हुई ,तब माँ ने अपने सिर को धड़ से अलग कर दिया और अपने रक्त की धारा से युद्ध-पिपासा शांत की। यह प्रसंग युयुत्सु वृत्ति (युद्ध करने की इच्छा) पर विजय पाने तथा भौतिक वासनाओं से ऊपर उठने के साधनामय जीवन की श्रेष्ठता को उजागर करता है । यह वैशाख की पूर्णिमा से एक दिन पहले की कथा है । (लेखक : रवि प्रकाश)
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 999761 5451