महाराजा अग्रसेन जी
अग्रसेन जी महाराज का द्वापर युग मे जन्म हुआ
राम राज्य के पदचिन्हों पर इनका हर इककदम हुआ
यज्ञ में पशु बलि देखकर मन मे उनके क्षोभ हुआ
पशु बलि को तभी उन्होंने यज्ञ में करना रोक दिया
धर्म क्षत्रिय त्याग उन्होंने वैश्य धर्म को अपनाया
लक्ष्मी माँ का पूजन करके धाम अग्रोहा बसवाया
महाभारत के युद्ध मे भी दिया पांडवों का ही साथ
सात फेरों से थाम लिया नागराज पुत्री का हाथ
एक रूपए और एक ईंट का दिया उन्होंने नारा था
हम सब एक बराबर कहकर सबको दिया सहारा था
पुत्र अठारह थे उनके जिनसे कुछ संकल्प कराये
ऋषि मुनियों से इसी लिए उन्होंने यज्ञ आदि करवाये
कर्मों के अनुरूप उन्हीं से गोत्र अठारह बनवाये
अर्थ उपार्जन के भी उनको रस्ते नये नए बतलाये
दयालुता और न्यायप्रियता के गुण थे उनमे भरपूर
कर्मठता और क्रियाशीलता का मुख पर दिखता था नूर
इतिहास रचा उन्होंने अपनी अलग बनाई थी पहचान
मान मिला जग में उनको सबने माना जैसे भगवान
गर्ग, गोयल ,गोइन ,बंसल, कंसल, सिंघल ,धारण, मंदल
तिंगल ,ऐरन, जिंदल, मंगल, नांदल, बिंदल ,मित्तल, भंदल,
मधुकुल, कुच्छल सभी यहां पर रहें प्यार से मिलजुलकर
नाम गोत्र अठारह के ये दिए उन्होंने बहुत ही सुंदर
इन सबके मिलकर रहने से अग्र समाज में मंगल हैं
और हमारे ही भारत का बहुत सुनहरा हर कल हैं
अश्विन शुक्ल की प्रतिप्रदा को इनकी ही जयंती मनाते हैं
भव्य भव्य आयोजन करके पूजा पाठ करवाते हैं
अग्रवाल होने का हमको गर्व बहुत है अपने पर
अग्रसेन के आदर्शों पर हम दिखलायेंगें चलकर
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उप्र)