महक (मुक्तक)
*महक (मुक्तक)*
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महक बनकर वह जीवन में गुलाबों की तरह आए
खुशी से एक वह भरपूर ख्वाबों की तरह आए
न मकसद था कोई जीवन का ,वह जब तक नहीं आए
वह आए तो सवालों के जवाबों की तरह आए
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451