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7 Aug 2022 · 1 min read

मन

विषय :–मन
मन की नम मरुभूमि पर ,अहसास तरू उगते हैं।
शब्द,वर्ण की टहनियों पर, भाव पुष्प खिलते हैं।

कर्म की रेख होती बड़ी गहरी,
मन पर अटल खिंचती है।
देव कहो या ईश्वर कहो तुम
छवि एक ही झलकती है।

लाख रूप धरे फिरे मानव,दर्पण में सच दिखते हैं।
मन की नम मरुभूमि पर ,अहसास तरू उगते हैं।

सुख -दुख ,धूप छाँह सम कर्म
सब मन के ही आधार रे।
सब जग से छिपा के रख लो
मन के तो नैन हजार रे।

जग में दिखता उजाला,मन से अज्ञान अंधेरे दिखते हैं
शब्द वर्ण की टहनियों पर, भाव.पुष्प खिलते हैं।

देह पर मंडराता भँवरा,
मन का रुप अनमोल ।
मत इतरा पा कर यौवन,
वातायन मन का खोल ।

भाव शून्य जब मन होता , सत्य पथ फिर कब दिखते हैं।
मन की नम मरुभूमि पर ही ,अहसास तरु खिलते.हैं।

स्वरचित ,मौलिक
मनोरमा जैन पाखी

Language: Hindi
2 Likes · 121 Views
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