मन के पार

बहुत भटक लिया परछाइयों के पीछे
अब सजग होना होगा
परम शान्ति के लिए जाना है अन्तर्मन की गहराइयों तक
मायावी स्तरों को खोना होगा
यह दिखती चमकाहट है क्षणभंगुरता से अभिशापित,
स्थायित्व परम विश्राम के लिए मन के परे होना होगा
संभल गए तो स्वर्ग, भटक गये तो नर्क
पर हैं दोनों ही झूठे, दोनों के पार उतरना होगा
उत्कृष्ट ऊँचाइयों की बग़ल में ही भयंकर गिराव है
गिरेंगे अनंत बार तो अनंत बार ही उठ संभलना होगा
घने अंधेरों के बीच हल्की सी सूक्ष्म डोर थामे
कदम कदम धीमा धीमा, पर सही दिशा में चलना होगा
ना प्रतीत सुख से लगाव, ना प्रतीत दुख से घृणा
इन उठती गिरती लहरों को तुम्हें तटस्थ देख निकलना होगा
अब ठहर जा अब रुक जा
अब सजग प्रेममय मौन हो, अपने अंदर उतरना होगा
डॉ राजीव
चंडीगढ़।