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24 Sep 2024 · 1 min read

मन का द्वंद कहां तक टालू

मन का द्वंद कहां तक टालू
भय से हार कैसे स्वीकारू
चित्त से अनुचित जान पड़े जो
ध्येय को अपने कैसे साधूं

भाग जाऊं मैं रण यह छोड़ कर
कायर ही कहलाऊंगा।
था अयोग्य समक्ष समाज के
कैसे मुख दिखलाऊंगा ।
✍️…S.p
किंतु यह भी कटु सत्य है,
मन को कौन ही साध सका है।।
इच्छाओं से निर्बल व्यक्ति ,
कहां समुंद्र को बांध सका है ।।

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