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6 Aug 2024 · 1 min read

मन इतना क्यों बहलाता है, रोज रोज एक ही बात कहता जाता है,

मन इतना क्यों बहलाता है, रोज रोज एक ही बात कहता जाता है,

मंजिल भी मिल जाएगी, रस्ते भी कट जाएंगे, आज आराम कर लेते हैं, कल से पक्का ढट जाएंगे, मेहनत की किताब के, हर पन्ने को रट जाएंगे,

कभी-कभी जहन में एक सवाल आता है, क्या आलस एक मजबूरी है, या दुखों की गहराईया दिखाने के लिए यह भी जरूरी है,

फिलहाल । तो देख रहा हूं मंजिल को, बैठा एक ही स्थान से, और मन ही मन सोच रहा हूं, कि किस दिन निकलेगा, ये मेहनत वाला तीर कमान से, तब तक कहीं छुट ना जाऊं, पिछे इस जहान से, पता नहीं कब निकलेगा, तीर कमान से,

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