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7 Feb 2024 · 1 min read

मनुष्य प्रवृत्ति

तन पे ना कपड़ा मन पे ना स्मृति, जब पैदा हुआ इंसान था।
ख़ाली मस्तिष्क और ख़ाली मुट्ठी, उसको भेजने वाला भगवान था।।
चींख चींख़ कर बता रहा बालक, मैं वहाँ से कुछ भी संग नहीं लाया।
ज्यों ज्यों बढ़ने लगा वह बालक, कैसे उसे हमने अपना पराया समझाया।।
युवावस्था तक आते आते उसका,व्यापार नौकरी गाड़ी बँगला अपना था।
अब धन दौलत इज्जत शौहरत के, ही बस दिन रात वो देखता सपने था।।
सपनों की दुनिया ने उसके अन्दर, लालच हिंसा और मक्कारी को जगा दिया।
बचपन में मिल बाँट कर खाने और खेलने की प्रवर्ती को उसके अंदर से भगा दिया।।
दिन रात कड़ी मेहनत की उसने, सेहत और भोजन को है लगता भुला दिया।
परिणाम स्वरूप बिगड़ गया स्वास्थ, उसे परिजनों ने उसको अस्पताल पहुँचा दिया।।
सेहत स्वास्थ और भोजन की लापरवाही ने उसको कच्ची उम्र में स्वर्गवासी बना दिया।
जीवन दिया था ख़ुशी ख़ुशी जीने के लिए, जिसको पैसा कमाने की मशीन बना दिया।।
है अनमोल मनुष्य जीवन जो केवल ख़ुशियों के आदान प्रदान से खिलता है।
अनुशासन त्याग समर्पण सेवा के विचार हों निहित जिसनें बस वही दूर तक चलता है।।
कहे विजय बिजनौरी हर व्यक्ति जो संयम और साहस से परिवार का पालन करता है।
भगवान के प्रिय भक्तों का दर्जा पाता है और निरोगी रह कर स्वर्ग की प्राप्ति करता है।।

विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।

Language: Hindi
124 Views
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