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28 Jun 2022 · 1 min read

मनुज शरीरों में भी वंदा, पशुवत जीवन जीता है

अंधकूप में पड़ा हुआ,बिषय बारुणी पीता है
मृगतृष्णा में पड़ा हुआ,मरा हुआ जीता है
घनघोर तिमिर में पड़ा हुआ ,बिष को अमृत कहता है
पड़ा असीमित कामनाओं में,वौराया सा रहता है
नहीं झांकता अंतस में अपने, बाहर ताकता रहता है
मनुज शरीरों में भी वंदा,पशुवत जीवन जीता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
Tag: मुक्तक
5 Likes · 4 Comments · 130 Views

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