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1 May 2024 · 1 min read

मजदूर

मजदूर

दिनभर मोल -भाव
सह कर मजदूरी करता ।
अपनी हथेली पर,
अपनी किस्मत की ,
खुद ही रेखाएं गढ़ता।

हड्डियों को गलाकर,
हर रोज लोहा करता।
पेट की खातिर,
इंसानी मंडी में हर रोज कटता।

अपने सपनों को छोड़कर ,
साइकिल के स्टैंड पर ।
वो नन्ही आंखों के लिए,
एक ख्वाब बुनता।
देती तो है सरकारें गारंटी।
पर उसकी भला कौन सुनता।

हर रोज आश्वासन और विकास से परे ।
अपनी मेहनत का थैला उठा ।
वह जिंदगी से रोज,
नई सिरे से नई लड़ाई करता।

Language: Hindi
95 Views
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