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4 Dec 2022 · 1 min read

मंदिर दीप जले / (नवगीत)

याद तुम्हारी
ऐसी, जैसे
मंदिर दीप जले ।

पनहारिन के
चंचल सिर पर
जब गगरी छलके ।
दूनर होती
चाल मधुर तब
स्वेद बिन्दु ढलके ।

ज्यों आनंद
सफलता की डग
घर की ओर चले ।

स्वार्थ चिड़ा
जब फुर्र हो गया
चिड़िया को छल के ।
सुगर चिरैया
की आँखों में
तब ममता ढलके ।

अबुध प्रतीक्षा
के कोटर में
मां का प्यार पले ।

भजनों की
उसनींदीं रातें
भगतों के भुनसारे ।
सुगर-सलोनी
भोली चितवन
थुनियाँ के उलकारे ।

दिन पहार-सा
उतरत-उतरत
जैसे शाम ढले ।

याद तुम्हारी
ऐंसी, जैसे
मंदिर दीप जले ।

००००

शब्दार्थ – दूनर – दोहरी, स्वेद – पसीना, सुगर – चतुर, चिरैया – चिड़िया, कोटर – घोंसला, उसनींदीं – उनींदी, थुनियाँ – मंडप की लकडी, उलकारे – ओट, पहार – पर्वत, उतरत – उतरते हुए ।

— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली), सागर
मध्यप्रदेश ।
मो – ८४६३८८४९२७

Language: Hindi
Tag: गीत
5 Likes · 14 Comments · 216 Views
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