भुजंगी छंद (मुक्तक )
यही अर्चना है यही भावना
करो पूर्ण माते सभी कामना
बुरे वक़्त में छोड़ना माँ नहीं
बढ़ा हाथ आगे तुम्हीं थामना
पुरानी चले ज़िन्दगी चाल है
बिछाती यहाँ मोह का जाल है
हँसाती रुलाती लुभाती हुई
हमें ले चले वो जहाँ काल है
जुदाई तुम्हारी सताती हमें
नहीं नींद आके सुलाती हमें
वफ़ा भी सजा आज तो हो गयी
मिले दर्द भी तो हँसाती हमें
डॉ अर्चना गुप्ता