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26 Jun 2016 · 1 min read

भाव विहग भर रहे उडान

गीतिका
भाव विहग भर रहे उडान।
उर नभ में हो रहा वितान।
सौम्य सुभगता का उपसार।
गुंजित मधुकर सम मृदु गान।
नवल सृजन शुचि नये विकल्प।
लुप्त आज होता अवसान।
निगल गयी द्युति तिमिर प्रभाव।
मधुर अधर पर चिर मुस्कान।
सौरभ सुरभि हवा चहुँ ओर।
प्रेम पुंज पाता सम्मान।
कलुषित गरल भाव कर भष्म।
हृदय सुधा रस करता पान।
भ्रम संशय सम विद्युत कीट।
करते आज स्वयं बलिदान।
दीप्तिमान उर का उत्कर्ष।
कर ‘इषु -प्रिय’ खुद का संज्ञान।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

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