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26 Apr 2022 · 6 min read

भागवत कथावाचक राजेंद्र प्रसाद पांडेय : एक अनुभूति (संस्मरण)

भागवत कथावाचक राजेंद्र प्रसाद पांडेय : एक अनुभूति
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वातावरण कृष्ण जन्म की बधाई से रोमांचित हो उठा । राजेंद्र प्रसाद पांडेय जी की भागवत-कथा के प्रसंग साक्षात उपस्थित हो गए । कृष्ण के रूप में सजे-धजे सुंदर बालक जब कथावाचक जी की गोद में बैठ गए और देर तक मुस्कुराए तो उस मुस्कुराहट के साथ टॉफियाँ-खिलौने आदि समस्त श्रोताओं को आयोजकों की ओर से बाँटे गए। इसने वास्तव में एक तरह से जन्मदिन का वातावरण उपस्थित कर दिया ।
*बधाई हो बधाई हो* यह शब्द व्यासपीठ से जब उच्चारित हुआ तो तरंग बनकर श्रोताओं के हृदओं को गुंजित कर गया । *नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की*- इन शब्दों के साथ महाराज श्री ने अपनी सुमधुर वाणी में भजन प्रस्तुत किया तो कभी *नंदलाला प्रगट भए आज, बिरज में लडुआ बँटे* यह बोल जब कृष्ण जन्मोत्सव की प्रसन्नता के रूप में अभिव्यक्त हुआ तो लोक भाषा में लोक अभिरुचि को स्पर्श किया और पंक्तियां सीधे हृदय में प्रविष्ट हो गईं।
*जायो यशोदा ने लल्ला ,मोहल्ला में हल्ला मच गयो* जब ठेठ लोकगीत के माध्यम से बधाई और खुशी का वातावरण कथावाचक महोदय प्रस्तुत करने लगे ,तब तो वातावरण की रसमयता की केवल कल्पना ही की जा सकती है । कृष्ण जन्म भागवत का अत्यंत महत्वपूर्ण और रुचिकर प्रसंग है । कथावाचक महोदय ने वर्णन भी तो खूब हृदय से किया । शुकदेव जी द्वारा परीक्षित जी को भागवत कथा सुनाते सुनाते आज चार दिन और चार रात्रि व्यतीत हो गई थीं।
*भगवान कृष्ण का जन्म* कंस के कारागार में हुआ । चतुर्भुज रूप-धारी भगवान को देख कर वसुदेव और देवकी भाव विभोर हो उठे । हृदय गदगद हो गया। जीवन में ऐसा सौभाग्य रूप-दर्शन का भला किसे मिलता है ! दिव्यता का प्रभाव भी देखिए ! भगवान के बाल-रूप का स्पर्श करते ही हाथों की हथकड़ी और बेड़ी खुल गईं। कारागार के ताले खुल गए । दरवाजे खुल गए । पहरेदार सुषुप्त अवस्था में चले गए और एक टोकरी न जाने कहाँ से उपस्थित हो गई ।वसुदेव ने कृष्ण के बाल-रूप को उसी टोकरी में बिठाया और उफनती हुई यमुना नदी से गोकुल गाँव की ओर चल दिए । यमुना को कृष्ण की पटरानी कहा गया है । जैसे ही भगवान कृष्ण के चरण यमुना ने स्पर्श किए, वह असीमानंद में डूब गई और उसका रौद्र-रूप शांत हो गया। तदुपरांत नदी पार करने में वसुदेव जी को कोई बाधा नहीं आई । यशोदा जी की गोद में कृष्ण को रखकर वह यशोदा जी की पुत्री को लेकर पुनः कारागार में आ गए और किसी को घटनाचक्र का आभास तक नहीं हो पाया । ऐसे दिव्य प्रसंग को जितनी भाव-प्रवणता के साथ महाराज जी ने उपस्थित किया उसी भाव के साथ श्रोताओं ने अपने हृदय के तार जोड़ दिए ।
तत्पश्चात भागवत कथा उन ऊँचाइयों का स्पर्श कर सकी, जो उसे करना ही चाहिए था । *वासना की निवृत्ति केवल उपासना से ही संभव है*- महाराज जी के प्रवचन का आज का सूत्र यही था । जब तक व्यक्ति संसार को रूप और सौंदर्य की दृष्टि से देखता है ,लोभ और आकर्षण की दृष्टि से भरा रहता है ,तब तक वासना समाप्त नहीं होती । यह वासना देह-रूप में विराजमान रहती है ।
एक निजी संस्मरण श्रोताओं को साझा करते हुए राजेंद्र प्रसाद पांडे जी ने कहा कि 1996 – 97 में अमरनाथ जी की यात्रा में गणेश टॉप पर हम चल रहे थे । 60 वर्षीय एक वृद्धा भी साथ में थीं। समूह में किसी ने वृद्धा से संबोधन में “माताजी” कह दिया । बस माताजी तो आग बबूला हो गईं। कहने लगीं “क्या हम तुम्हें माताजी नजर आते हैं ?” राजेंद्र प्रसाद जी ने मनोरंजन के भाव से संस्मरण को आगे बढ़ाते हुए बताया कि हमने पूछने वाले से कहा कि यह माताजी नहीं हैं ,इनका तो अमरनाथ यात्रा में विवाह होने वाला है और यह कहकर उन्होंने आगे-आगे चल रहे वृद्धा के पतिदेव की ओर इशारा करते हुए बताया कि अमुक सज्जन से इनका विवाह हो रहा है । जब कुछ क्षणों में बात सबकी समझ में आ गई तो सब लोग अमरनाथ-यात्रा में ठहाके लगाकर हँसने लगे। श्रोताओं को भागवत के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराने के लिए महाराज श्री द्वारा कुछ *मनोरंजन* के लहजे में बातचीत करना एक विशिष्ट कला है ।
आप ने बताया कि भारत की संस्कृति कभी भी *भ्रूण हत्या* के पक्ष में नहीं रही। गर्भस्थ शिशु को कभी भी मारा नहीं जाता था । यहाँ तक कि अगर कोई विरोधी पक्ष की महिला भी गर्भ धारण किए हुए हैं तो उसे अभय दान दिया जाता था । आज इन सब बातों से प्रेरणा ग्रहण करने की अति आवश्यकता है ।
एक दूसरा उदाहरण कथा प्रसंग के माध्यम से महाराज जी ने *द्वार पर दीपक प्रज्वलित* करने के बारे में बताया । इसका अभिप्राय अंदर और बाहर दोनों तरफ उजाला करना होता है अर्थात हम भी प्रकाशित हों और हमारे आसपास का वातावरण भी प्रकाशमान हो । अर्थात सब की उन्नति में ही हमारी उन्नति है ।
आपने जीवन में सुख-सौंदर्य तथा आकर्षण से भ्रमित न होने की जनमानस को सीख दी । *समुद्र मंथन* का प्रसंग श्रोताओं के सामने वर्णित करते हुए आपने बताया कि भगवान सुंदर स्त्री का *मोहनी-स्वरूप* लेकर आ गए और उनके रूप-जाल में असुर फँस गए । परिणाम यह निकला कि असुर अमृत से वंचित हो गए। अतः जीवन में अमृतपान करना है तो भौतिक सौंदर्य में उलझने से बचना ही होगा। भगवान शंकर की सबसे बड़ी महानता यही है कि उन्होंने कालकूट अर्थात विष को अपने कंठ में अटका लिया । यह कार्य केवल महादेव ही कर सकते थे ,इसीलिए उनका एक नाम *नीलकंठेश्वर* पड़ गया।
व्यक्ति को कभी भी कितना भी उच्च स्थान क्यों न मिल जाए लेकिन गुरु के प्रति नतमस्तक न होने की चूक कभी नहीं करनी चाहिए । प्रसंग को विस्तार से बताते हुए आपने बताया कि इंद्र ऐरावत हाथी पर जा रहा था । अपने मद में चूर था। उसके गुरु आचार्य बृहस्पति ने अपने गले से माला उतार कर इंद्र के गले में पहना दी । इंद्र अपनी सत्ता के अहंकार में चूर होने के कारण गुरु की माला की गुरुता को पहचान नहीं पाया । उसने बहुमूल्य माला को एक तुच्छ वस्तु जानकर तत्काल गले से उतारकर ऐरावत हाथी के गले में पहना दी और हाथी ने अपने स्वभाव के अनुसार उसे गले से उतारकर पैरों से कुचल दिया । यह गुरु का अपमान था जिसका दुष्परिणाम मिलना सुनिश्चित था ।
कथावाचन के बीच-बीच में कुछ दोहों के माध्यम से भी श्रोताओं का मनोरंजन करने में कथावाचक महोदय सिद्धहस्त हैं। एक दोहा आपने पढ़ा :-

*धीय जमाई ले गए, बहुएँ ले गयीं पूत*
*कबिरा यह कहने लगे ,रहे ऊत के ऊत*
उपरोक्त दोहा लोकजीवन का एक पक्ष है । कथावाचक महोदय ने दूसरा पक्ष भी रखा और कहा कि सुंदर और मधुर व्यवहार से व्यक्ति परिवार को आपस में जोड़े रख सकता है तथा परस्पर प्रीति के द्वारा मधुर संबंधों की स्थापना कोई असंभव बात नहीं है । इसके लिए सदैव बहू के माता-पिता की प्रशंसा करनी चाहिए तथा किसी कारणवश अगर कोई नाराजगी भी है तो उसको विस्मृत करके उनके सुंदर कार्यों को बारंबार स्मरण करने से सास और बहू के मध्य प्रेम बढ़ेगा तथा बहुएँ सासों को भी अपने माता-पिता के समान ही अपनत्व प्रदान करेंगी ।
आज की कथा में साक्षात कृष्ण भगवान के रूप में गोद में खेलने की उम्र के बच्चों के सज-धज कर आने तथा कृष्ण जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आइसक्रीम ,खीर, मिश्री, गोला ,टॉफियाँ तथा खिलौने आदि वितरित किए जाने से *बर्थडे जैसा माहौल* बन गया ।
सुंदर आयोजन के लिए आयोजक मंदिर वाली गली निवासी *श्री सुमित अग्रवाल परिवार* तथा भावपूर्ण कथा-प्रस्तुति के लिए कथावाचक महोदय बधाई के पात्र हैं ।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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