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15 Jun 2024 · 1 min read

भरम

आलम -ए – तन्हाई है ,
फिर ये जुस्तुजू किसकी है ,

जो बहार अब तक ना आई ,
फिर गुलों में ये खुशबू किसकी है ,

हर सम्त तीरगी है छाई ,
फिर ये रोशन शु’आ’ किसकी है ,

खामोशी का पस-मंज़र है ,
फिर ये सदा किसकी हैं ,

ख़यालो के अब्र गुम हैं ,
फिर ज़ेहन में ये सरगर्मियां किसकी हैं ,

कुछ ना कह पाऊँ , ना कुछ समझ पाऊँ ,
फिर दिल में ये बे-क़रारी किसकी हैं ,

सब कुछ लुटा देने का जुनूँ है ,
फिर ये बे-ख़ुदी किसकी है ।

Language: Hindi
1 Like · 74 Views
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